Joshimath : सुप्रीम कोर्ट ने जोशीमठ में जमीन धंसने के मामले पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि आप उत्तराखंड हाईकोर्ट में अपनी बात रखें.
चीफ जस्टिस ने कहा- हाईकोर्ट सभी मांगों को सुनने में सक्षम
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि उत्तराखंड हाईकोर्ट पहले ही इस मामले को सुन रहा है. वह याचिकाकर्ता की तरफ से रखी गयी सभी मांगों को सुनने में सक्षम है. शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की ओर से वकील परमेश्वर नाथ मिश्र ने कहा कि जोशीमठ भू-धंसाव (joshimath Landslide) की जद में ढाई हजार साल से भी ज्यादा प्राचीन मठ भी आ गया है.
Joshimath : याचिकाकर्ता के वकील बोले- प्राचीन धरोहरों के अस्तित्व पर संकट
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पूरे इलाके में दहशत है. घरों की दीवारों और छतों पर दरारें आ गयी हैं. इससे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राचीन धरोहरों के अस्तित्व पर संकट आ गया है. याचिका में क्षेत्र की जनता के जानमाल की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की गयी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी तत्काल सुनवाई से किया था इनकार
दरअसल, बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों और अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग गंतव्य औली का प्रवेश द्वार जोशीमठ भूधंसाव (joshimath Landslide) की एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है. शीर्ष अदालत ने 10 जनवरी को यह कहते हुए याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था कि स्थिति से निपटने के लिए लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार है और सभी महत्वपूर्ण मामले कोर्ट में नहीं आने चाहिए. हालांकि, कोर्ट ने सरस्वती की याचिका को 16 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था.
Joshimath : याचिका में क्या किया है जिक्र
याचिका में इस चुनौतीपूर्ण समय में जोशीमठ (Joshimath) के निवासियों को सक्रिय रूप से समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को निर्देश देने की भी मांग की गयी है. संत की याचिका में कहा गया है कि मानव जीवन और उनके पारिस्थितिकी तंत्र की कीमत पर किसी भी विकास की आवश्यकता नहीं है और अगर ऐसा कुछ भी होता है, तो यह राज्य और केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि इसे तुरंत युद्ध स्तर पर रोके.