झारखंड की आत्मा से जुड़ी ‘हूल क्रांति’ पर डॉ. राजश्री जयंती की ओजपूर्ण कविता
रांची, 29 जून: झारखंड के स्वतंत्रता संग्राम और आदिवासी संघर्ष की गौरवगाथा को समर्पित साहित्यकार एवं भाजपा नेत्री डॉ. राजश्री जयंती द्वारा रचित कविता ‘हूल क्रांति’ ने एक बार फिर से इतिहास के उस स्वर्णिम अध्याय को जीवंत कर दिया है, जिसमें सिद्धू-कान्हू, चांद-भैरो, फूलो-झानो जैसे महान बलिदानियों ने अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी।
कविता में डॉ. जयंती ने 1855 की हूल क्रांति को याद करते हुए लिखा है कि कैसे संथाल परगना के वीर सपूतों ने अंग्रेजों और ज़मींदारों के अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंका था। सिद्धू-कान्हू और चांद-भैरो जैसे नायकों ने जहां बलिदान देकर क्रांति को दिशा दी, वहीं फूलो-झानो जैसी वीरांगनाओं ने महिलाओं की भागीदारी से इस आंदोलन को ऐतिहासिक बना दिया।
कविता की पंक्तियाँ —
सिद्धू कान्हू ने गंवाई जान हमारे लिए
चांद भैरो ने गंवाई जां हमारे लिए
1855 में हुआ था ऐलान
देश की खातिर किया था बलिदान
वीर शहीदों तुम्हें है सबका सलाम
हूल आंदोलन था जिस क्रांति का नाम।
जमींदारों की अति से परेशान था
संथाल का हर कोना गूंज उठा था
अंग्रेजों को नहीं देना हमें है लगान
संथाल विद्रोह का हुआ यूं था ऐलान।
फूलो और झानो ने उठाई थी आवाज़
अन्याय के खिलाफ बुलंद की आवाज़
स्वतंत्रता संग्राम की थी ये क्रांति
भूलेगा ना झारखंड हूल क्रांति।
