नवरात्रि 2024 : 3 अक्टूबर, गुरुवार से नवरात्रि शुरू हो रही है. इस बार अंग्रेजी तारीखों और तिथियों का तालमेल गड़बड़ होने से अष्टमी और महानवमी की पूजा 11 तारीख को होगी. 12 अक्टूबर, शनिवार को दशहरा मनेगा. जिससे देवी पूजा के लिए पूरे नौ दिन मिलेंगे.
नवरात्रि के पहले दिन घट (कलश) स्थापना की जाती है. इसे माता की चौकी बैठाना भी कहा जाता है. इसके लिए दिनभर में दो ही मुहूर्त रहेंगे.
अब समझते हैं नवरात्रि का विज्ञान
देवी भागवत और मार्कंडेय पुराण के मुताबिक नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी पूजा और व्रत करने का विधान है. आयुर्वेद के नजरिये से इसे समझें तो, इन दिनों में मौसम बदलता है, जिससे डाईजेशन गड़बड़ हो जाता है. इसे ठीक रखने के लिए व्रत की परंपरा शुरू की गई है.
सेहत को ठीक करने के लिए सबसे अच्छा समय
शारदीय नवरात्र से सर्दियों की शुरुआत होती है, इसलिए इस दौरान हल्का आहार लिया जाता है. इस समय के दौरान पाचन प्रक्रिया आम दिनों की अपेक्षा धीमी होती है. जिससे आलस्य, सुस्ती महसूस होती है. इसी कारण कहते हैं कि नवरात्र में उपवास नहीं करें तो भी भोजन हल्का करना चाहिए.
उपवास से हमारा पाचन तंत्र ठीक हो जाता है. खाना पचाने की क्षमता बेहतर होती है. मौसम परिवर्तन का ये मुख्य समय होता है. इस कारण बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया और जीवाणु ज्याद एक्टिव रहते हैं. ऐसे में नवरात्रि के दिनों में उपवास का महत्व बढ़ जाता है.
नवरात्रि: दिन-रात बराबर होते हैं, नई शुरुआत और पुराना खत्म होने का समय
नवरात्रि के वक्त सूर्य भूमध्यरेखीय तल के सबसे करीब होता है और दिन-रात बराबर होते हैं. विज्ञान की भाषा में इसे इक्विनॉक्स कहते हैं. ये साल में दो बार होता है. पहला मार्च में उसके बाद 22 सितंबर को, जिसे ओटमनल इक्विनॉक्स कहते हैं. इन दिनों में धरती तक सूर्य और चंद्रमा की रोशनी बराबर पहुंचती है. साल में जब ये खगोलीय घटना हो रही होती है, उसी समय हम शारदेय नवरात्रि मनाते हैं. शरद की नवरात्रि बर्फ के गिरने का मौसम लाती है.
आश्विन महीने की शारदेय नवरात्रि में न ज्यादा ठंड रहती है न गर्मी. इस वक्त प्रकृति बेहद अनुकूल होती है. प्रकृति और मौसम के बदलने का असर निजी और बाहरी दोनों तरह से दिखता है. निजी रूप से ये साधना, ध्यान का समय है, जबकि बाहर दुनिया में इसी दौरान गर्मी कम होती है. विज्ञान में इसे प्रिंसिपल ऑफ थर्मोडायनामिक्स कहते हैं.
हमारे ऋषि जानते थे कि इक्विटल साइकल के बिंदु, यानी ऋतुओं का संधिकाल ब्रह्मांड की शक्ति के विघटन और उसे फिर से बनाने का प्रतिनिधित्व करते हैं. ये हमारे मन और शरीर की छोटी-सी दुनिया में भी ग्रीन साइकल के पूरा होने और फिर नए अंकुर फूटने का ही बड़ा रूप है.