128 अर्घ्यों से श्री सिद्ध भगवंतों की आराधना की गई

राँची

रांची : श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के पांचवें दिन आज 128 अर्घ्यों से श्री सिद्ध भगवंतों की आराधना की गई. आर्यिका विभाश्री माताजी ने आज का अनुष्ठान के विषय में बताया कि संसार के सभी अचेतन दव्यों में से चेतन द्रव्य महत्वपूर्ण हैं. इस संसार में सबसे ज्यादा कीमती सम्यक दर्शन है. सम्यक दर्शन अर्थात समीचीन सम्यक श्रद्धा जिनेन्द्र भगवान के वचनों में होना सम्यक दर्शन है.

सिद्ध परमेष्ठी इन 108 प्रकार के पापों से रहित होते हैं

मिट्टी के घड़े में 100 साल से मल भरा हुआ हो और उसको अच्छे से साबुन-निरमा से धोया और उसमें अच्छा क्षीरसागर का जल भर दिया फिर भी उसमें बदबू आती है उसी प्रकार मेरा यह शरीर मिट्टी का घड़ा है जिसमें अनादिकाल से क्रोध, मान, माया लोभ परिग्रह रूपी मल भरा हुआ है उसको हमने भगवान की भक्ति से त्याग – तपस्या से मल को साफ कर लिया फिर भी उसमें आकांक्षा की बदबू आ ही जाती है हम अपने दैनिक जीवन में मन से, वचन से, काय से करना, कराना एवं करने वाले की अनुमोदना करना, क्रोध के कारण, मान के कारण, माया के कारण, लोभ के कारण, किसी कार्य को करने का विचार करना, कार्य करने के साधन जुटाना एवं कार्य को प्रारंभ करना इस प्रकार से कुल 108 प्रकार के पापों का आश्रव करते रहते हैं. सिद्ध परमेष्ठी इन 108 प्रकार के पापों से रहित होते हैं. हम भी अपने इन 108 पापों को नष्ट कर उनके गुणों को प्राप्त कर सके. इसी कामना के साथ इस सिद्ध चक्र महामंडल विधान में आज पांचवे दिन 128 अर्घ्यों के माध्यम से सिद्ध भगवान की आराधना की गई. संध्या आरती का सौभाग्य श्री धर्मचन्द अमीत कुमार राकेश कुमार रारा परिवार को मिला. पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य श्री प्रकाश चन्द, विनोद कुमार, राजीव कुमार, गँगवाल परिवार को शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य श्रीमती तारामणी देवी, संजय कुमार, अजय कुमार, सोगानी परिवार एवं श्री पूरणमल दीपक कुमार जी सेठी परिवार को मिला.

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