रांची : अग्रसेन पथ स्थित श्री श्याम मन्दिर में श्री श्याम मण्डल द्वारा आयोजित पावन श्री शिवमहापुराण कथा के सप्तम एवम अंतिम दिन भक्तों का उत्साह वंदनीय था साथ ही पावन कृपा का विदाई का अवसाद भी था.
पारंपरिक पूजन वंदन के साथ शिव व्याख्यान
अपराह्न 4 बजे स्वामी श्री परपूर्णानन्द जी के व्यास पीठ पर विराजमान होने के बाद पारंपरिक पूजन वंदन के साथ स्वामी श्री ने शिव व्याख्यान को आगे बढ़ते हुए कहा कि – शिवलिंग भगवान शिव के निर्गुण और निराकर स्वरूप का प्रतीक है.
सच्चिदानन्द स्वरूप आनंदघन भवान शिव सर्वव्यापी
सच्चिदानन्द स्वरूप आनंदघन भवान शिव सर्व व्यापी हैं, आगे स्वामी जी ने शिव के विभिन्न अंसावतार व पूर्णावतार का विस्तृत ज्ञान बांटा साथ ही कहा की 19वें कल्प में सत्योजात शिव का अवतार हुआ नाम देव शिव, महाबाहु स्वरूप शिव, अघोर रूप में महादेव आदि अनेक रूपों में शिव ने अवतार लिया.
काल भैरव शिव के ही अवतार
आकाश, पृथ्वी, जल, वायु एवं अग्नि सभी में शिव का वास है. साथ ही व्याख्यान को आगे बढ़ाते हुए प्रसंगवश स्वामी जी ने नरसिंह अवतार का सुंदर वर्णन किया. काल भैरव शिव के ही अवतार हैं जो काशी में कोतवाल के रूप में विराजमान हैं.
राम भक्त हनुमान शिव के ही अंशावतार
साथ ही कहा की राम भक्त हनुमान शिव के ही अंशावतार हैं – पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए स्वामी जी ने कहा की शिव के तेज को पवनदेव ने अंजनी के गर्भ स्थापित किया इस लिए हनुमान पवन पुत्र, अंजनिसूत, शंकर सुवन व केसरीनंदन कहलाए.
स्वामी जी ने द्वादश शिवलिंगों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला
व्याख्यान को आगे बढ़े हुए स्वामी जी ने द्वादश शिवलिंगों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला , शिव का श्रृंगार हर स्वरूप में अपने आपमें विशेष है. त्रिशूल दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों के विनाश का सूचक है. रुद्रक्ष भगवान शिव का ही स्वरूप है जो उनकी आंसुओं से प्रगट हुआ, क्रीपुण्ड तिलक, त्रिगुण – सतोगुण, रजोगुण और तपोगुण का प्रतीक है.
जटा में गंगा, आध्यात्म की धारा का प्रतीक
भस्म आकर्षण, मोह, अहंकार आदि से मुक्ति का प्रतीक है, जटा में गंगा, आध्यात्म की धारा का प्रतीक है. नन्दी शिव के गण हैं व नाग शिव की कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है. चंद्रमा मन की स्थिरता और आदि से अनन्त का प्रतीक है.
डमरू श्रृष्टि के आरम्भ व ब्रम्हनाग का प्रतीक
कुंडल शिव शक्ति के रूप में श्रृष्टि के सिद्धांत का नेतृत्व करते हैं. डमरू श्रृष्टि के आरम्भ व ब्रम्हनाग का प्रतीक है. कमंडल, संतोषी, तपस्वी, अप्रिग्रही जीवन साधना का प्रतीक है. इस प्रकार शिव के ज्योति लिंगों एवं दिव्य स्वरूप का वर्णन करते हुए स्वामी जी ने शिवमहापुराण कथा को विराम दिया.
आरती प्रसिद्ध डॉक्टर एम. सी. खेतान के परिवार ने किया
अन्त में आज के अंतिम दिन का कथा का समापन आरती शहर के प्रसिद्ध डॉक्टर एम. सी. खेतान के परिवार द्वारा किया गया. साथ में प्रसाद वितरण के साथ दिनों तक चलने वाली शिवमहापुराण का समापन किया गया.
कार्यक्रम को सफल बनाया
आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में सुरेश चन्द्र पोद्दार, चन्द्र प्रकाश बागला, श्याम सुन्दर पोद्दार, रमेश सारस्वत, गोपी किशन ढांढनीयां, ओम जोशी, मनोज सिंघानिया, धीरज बंका, राकेश सारस्वत, विजय शंकर साबू का सहयोग रहा.