रांची : आज शीतला अष्टमी पूजा का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. मंदिरों में महिलाएं परंपरागत वेशभूषा के साथ शीतला माता की पूजा पूरे विधि- विधान से की. राष्ट्रीय सनातन एकता मंच एवं पवित्रम गोसेवा परिवार के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि हिंदू धर्म में हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतलाष्टमी मनायी जाती है.
बसौड़ा शीतला माता को समर्पित त्यौहार
शीतला अष्टमी को बसौड़ा अष्टमी भी कहा जाता है. बसौड़ा शीतला माता को समर्पित त्यौहार है. यह व्रत होली के आठवें दिन पड़ता है. मान्यता है कि इस दिन शीतला माता की विधि विधान से पूजा करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख शांति आती है. हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का विशेष महत्व होता है.
शीतला की आराधना करने से सभी कष्ट दूर होते हैं
माना जाता है कि इस दिन माता शीतला की आराधना करने से भक्तों को सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती है. इसके साथ ही रोगों से मुक्ति मिलने की मान्यता है. शीतला माता को शीतलता प्रदान करने वाला माना गया है. शीतला माता को अष्टमी के दिन बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. इसके बाद इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.
बासी भोजन करने से शीतला माता का मिलता है आशीर्वाद
इस दिन दिन बासी भोजन करने से शीतला माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है. मारवाड़ी समाज शीतलाष्टमी बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया, शीतला पूजा के दिन पूजा की थाली में दही, पुआ, रोटी बाजरा, सतमी के बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखते हैं, दूसरी थाली में आटे से बनी दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मौली, होली वाली बड़कुले की माता, सिक्के और मेहंदी तथा दोनों थाली के साथ में ठंडे पानी का लोटा रखते हैं.
सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाया जाता है
माता को सभी चीजें चढ़ाने के बाद खुद और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाया जाता है, मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाकर रोली और हल्दी का टीका, मेहंदी, मौली और वस्त्र, तथा आटे के दीपक को बिना जलाए माता को अर्पित किया जाता है. माता को चढ़ाए जल को सभी सदस्य अपनी आंखों में लगाते हैं. शीतला पूजा के दिन ब्राह्मणों एवं गरीबों को दान भी दिया जाता है.