रांची : प्रणामी मिशन के प्रमुख संत परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा 28 मई को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा. पुज्य गुरुदेव को पद्मश्री आवार्ड देने की घोषणा से क्षेत्र के प्रणामी समुदाय में खुशी की लहर देखने को मिल रही है. मानव जीवन का ये सार—तुम सेवा से पाओगे पार को जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाते हुए पुज्य गुरुदेव ने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण दीन—दुखियों की सेवा में लगा रखा है. वे सुबह 4 बजे से रात को 1 बजे तक सेवाकार्य में लगे रहते हैं. एक दिन में महज 3 से 4 घंटे तक विश्राम करके पुन: पूरी एनर्जी के साथ वे सेवाकार्य में लग जाते हैं.
जुई में हुआ जन्म
परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज का जन्म 1 अगस्त 1945 को हरियाणा के जिला भिवानी के गांव जुई में हुआ था. वह एक ब्राह्मण परिवार से थे. उनके पिता बृजलाल और माता शिव बाई हिंदू संस्कृति और परंपराओं के कट्टर अनुयायी थे. उन्होंने धीरे-धीरे धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में रुचि लेना शुरू कर दिया, जिसके परिणाम स्वरूप उनके बहुमुखी चरित्र ने बहुत ही निर्णायक तरीके से आकार लिया. वह कम उम्र में ही बहुत गतिशील हो गए और उनमें अपार क्षमताएं प्रदर्शित हुई.
शिक्षक से सेना और सेना से वैराग्य
बचपन में ही गुरुदेव राधिकादास जी ने उनका अभिषेक और जागरण किया था. शिक्षा प्राप्त करके शिक्षक बनें. हालाँकि नियति उन्हें कहीं और ले गई. राष्ट्र की सेवा करने की आंतरिक इच्छा ने उन्हें सेना में शामिल कर दिया. वहाँ वे अधिक धार्मिक हो गए और उनमें ‘वैराग्य’ की भावना विकसित हुई. भारतीय सेना में आठ साल तक सेवा करने के बाद इस्तीफा देना पड़ा.
1972 में बसंत पंचमी के शुभ दिन पर गुरुदेव मंगलदास जी की उपस्थिति में, युवा भानु ने विकारों और सांसारिक सुखों को त्यागने की पवित्र शपथ ली और ‘ब्रह्मचर्य’ को अपनाया – संत बनने की दिशा में पहला कदम. इसी दिन गुरुदेव मंगलदास जी ने भानु को सदानंद नाम दिया था.’