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रांची: सरना झंडा की स्थापना को लेकर आदिवासी समाज में गहरी खाई

रांची में सरना झंडा की स्थापना को लेकर आदिवासी समाज के बीच एक बड़ा विवाद उभर कर सामने आया है। गुरुवार को बिरसा मुंडा समाधि स्थल के सामने दो गुट आमने-सामने हो गए। एक पक्ष इसे पारंपरिक आस्था और जमीन की रक्षा से जोड़ रहा है, जबकि दूसरा पक्ष इसे झूठी आस्था के नाम पर जमीन कब्जा करने की साजिश मानता है।

अजय तिर्की पर गंभीर आरोप

केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की पर आरोप लगते हुए कहा गया है कि उन्होंने झंडा गाड़ने और समाज में फूट डालने का प्रयास किया है। निशा भगत ने तो तिर्की को सीधे तौर पर “दलाल” करार देते हुए कहा कि झंडे का अपमान सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह झंडा केवल पारंपरिक पुजारी के हाथों ही स्थापित होना चाहिए, न कि किसी दलाल के माध्यम से। वहीं, सोमा उरांव ने झंडे के गलत इस्तेमाल की ओर इशारा करते हुए कहा कि पूजा स्थलों पर श्रद्धा (सरना) के लिए झंडा लगाया जाता है, लेकिन अब इसे जमीन कब्जाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है।

अजय तिर्की का बयान

वहीं, अजय तिर्की ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ईसाई और सरना परिवार वर्षों से मिलजुलकर रह रहे हैं। उनका कहना था कि झंडा इसलिए स्थापित किया जा रहा है, ताकि बिल्डर माफिया जमीन पर कब्जा न कर सकें। तिर्की ने यह भी कहा कि इस बारे में थाना में शिकायत दी जा चुकी है।

स्थानीय पुजारी की आपत्ति

अरगोड़ा मौजा के पाहन (परंपरागत पुजारी) शिबू पाहन ने दावा किया कि बिना शुद्धिकरण के झंडा उखाड़ा गया है, जो परंपरा के खिलाफ है। उन्होंने इस पर विरोध जताया और इसे धार्मिक दृष्टि से गलत बताया। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनका परिवार कई पीढ़ियों से उसी जमीन पर रह रहा है और अब यह झंडा जमीन बचाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है।

दो आदिवासी गुट आमने-सामने

कोकर समाधि स्थल के सामने केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की के समर्थक सैकड़ों लोग सरना झंडा स्थापित करने पहुंचे। वहीं, इसके विरोध में जेएलकेएम नेता निशा भगत, सोमा उरांव, मेघा उरांव समेत कई आदिवासी संगठनों के लोग विरोध कर रहे थे। दोनों पक्षों के बीच स्थिति तनावपूर्ण हो गई, जिससे पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।

विवाद सुलझाने के लिए तैनात की गई पुलिस

दोनों पक्षों के बीच बढ़ते हंगामे को देखते हुए लालपुर थाना ने सैकड़ों महिला पुलिसकर्मियों को मौके पर तैनात किया है, ताकि स्थिति को शांत किया जा सके और कोई अप्रिय घटना न घटे।

समाज में विभाजन की स्थिति

यह विवाद आदिवासी समाज के भीतर गहरे विभाजन की ओर इशारा करता है, जहां परंपरा, आस्था और जमीन की रक्षा को लेकर विभिन्न गुटों के मत अलग-अलग हैं। अब देखना होगा कि इस विवाद का समाधान किस तरह निकाला जाता है और क्या यह समाज में एकजुटता ला पाएगा या और अधिक तनाव पैदा करेगा।

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