रामदास सोरेन : संघर्ष से सफलता तक का सफर, 44 वर्षों बाद मंत्री पद की कुर्सी तक पहुंचे
रांची, 16 अगस्त 2025: झारखंड के वरिष्ठ नेता और राज्य सरकार में शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन का शुक्रवार को निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, सरिता विहार (जसोला) में अंतिम सांस ली। 62 वर्षीय रामदास सोरेन के निधन से पूरे झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई है। राजनीतिक, सामाजिक और जनजातीय समुदायों में उनके जाने से अपूरणीय क्षति मानी जा रही है।
44 वर्षों का संघर्षपूर्ण राजनीतिक जीवन
रामदास सोरेन का राजनीतिक जीवन लगभग 44 वर्षों तक सक्रिय रहा। 1980 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले सोरेन ने राजनीति में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। वे झामुमो के समर्पित कार्यकर्ता रहे और पार्टी के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए संगठन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई।
झारखंड आंदोलन के सशक्त सेनानी
झारखंड आंदोलन में शिबू सोरेन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर रामदास सोरेन ने सक्रिय भूमिका निभाई। इस आंदोलन के दौरान उन पर कई मुकदमे भी दर्ज किए गए, लेकिन वे कभी पीछे नहीं हटे। आदिवासी समाज में उनकी गहरी पकड़ और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें एक जननेता के रूप में स्थापित किया।
चुनावी सफर और सफलता
रामदास सोरेन ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 2004 में घाटशिला से लड़ा, लेकिन पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और हार गए। 2009 में झामुमो ने उन्हें टिकट दिया और वे विधायक चुने गए। 2014 में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा, लेकिन 2019 और फिर 2024 में जीत हासिल कर उन्होंने विधानसभा में अपनी मजबूत वापसी दर्ज कराई।
शिक्षा मंत्री के रूप में नई पहचान
हाल ही में रामदास सोरेन को झारखंड सरकार में शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन्होंने राज्य की शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए कई योजनाएं शुरू कीं, विशेष रूप से आदिवासी बच्चों की शिक्षा पर जोर देते हुए। वे शिक्षा को सामाजिक न्याय का माध्यम मानते थे।
ग्रामीण पृष्ठभूमि से नेतृत्व तक का सफर
रामदास सोरेन का जन्म 1 जनवरी 1963 को झारखंड के एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था। घोड़ाबांधा क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले सोरेन का जीवन संघर्ष और मेहनत की मिसाल रहा। उन्होंने गांव के सरकारी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और स्नातक तक पढ़ाई की। छात्र जीवन से ही सामाजिक कार्यों में उनकी रुचि थी।
पारिवारिक विरासत और राजनीतिक विरासत
रामदास सोरेन के दादा टेल्को में काम करते थे और उनका परिवार घोड़ाबांधा में ही बस गया था। पिता के निधन के बाद रामदास सोरेन को ग्राम प्रधान चुना गया और वहीं से उनकी सार्वजनिक सेवा की शुरुआत हुई। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में ईमानदारी, संघर्ष और सेवा को प्राथमिकता दी।
चंपाई सोरेन से आत्मीय संबंध
चंपाई सोरेन के साथ रामदास सोरेन का आत्मीय संबंध था। जब चंपाई सोरेन भाजपा में शामिल हुए, तब भी उन्होंने उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए कहा था कि “पार्टी से बड़ा कोई व्यक्ति नहीं हो सकता।” उनका यह बयान पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है।
रामदास सोरेन के निधन से झारखंड को एक ऐसा जननायक खोना पड़ा है, जिसने अपने संघर्ष, कर्मठता और सिद्धांतों से राज्य की राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी। उनके कार्यों और योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा।
