पलामू के सोहेया पहाड़ में अवैध खनन के खिलाफ 566 दिनों से धरना-प्रदर्शन

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पलामू : जिले के हुसैनाबाद प्रखंड क्षेत्र में सोहेया पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति का अवैध खनन के खिलाफ चलाया जा रहा आंदोलन चरम पर है. समिति के सदस्यों और ग्रामीणों का धरना 566 दिनों से लगातार जारी है. सोहेया पहाड़ की तलहटी में खनन गतिविधियों को रोकने की मांग को लेकर समिति ने 16 फरवरी, 2023 से धरना जारी रखा है. इसके बावजूद प्रशासन द्वारा अवैध खनन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है.

संघर्ष समिति के सदस्यों ने प्रशासनिक अधिकारियों, जिला उपायुक्त, खनन पदाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी और अंचल अधिकारी हुसैनाबाद को बार-बार अवैध खनन की जानकारी दी है. इसके बावजूद आज तक खनन गतिविधियों पर कोई रोक नहीं लगाई गई. समिति के सदस्यों का आरोप है कि पत्थर माफिया और खनन विभाग के बीच गठजोड़ है, जिसके चलते अवैध खनन रुकने का नाम नहीं ले रहा. समिति के सदस्यों ने कहा कि उन्हें खनन माफिया से कई बार धमकियां मिली हैं और उनके खिलाफ गलत मुकदमे भी दर्ज कराए गए हैं लेकिन वे पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि खनन बंद कराने के लिए वे अंतिम समय तक संघर्ष करते रहेंगे.

अवैध खनन को बंद कराने के उद्देश्य से सोहेया पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति ने 22 नवंबर, 2023 से 9 जनवरी तक उपायुक्त कार्यालय के समक्ष 50 दिनों तक धरना दिया लेकिन अधिकारियों की मौन प्रतिक्रिया के चलते समिति के सदस्य रामकेश्वर महतो और सत्येंद्र महतो ने 10 जनवरी से 15 फरवरी तक 37 दिनों तक अमरन अनशन भी किया. इसके बावजूद खनन पर रोक लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया.

समिति के अनुसार, 1908 के सर्वे खतियान में सोहेया पहाड़ के जंगल और झाड़ियों को दर्ज किया गया था लेकिन इसे अवैध रूप से खनन के लिए आवंटित कर दिया गया. मापदंडों के अनुसार, खनन क्षेत्र की दूरी 500 मीटर होनी चाहिए लेकिन माइंस की दूरी केवल 250 मीटर के अंदर है. जब ब्लास्टिंग होती है तब पत्थर घरों और खेतों पर गिरते हैं, जिससे बड़ी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. बिना पूर्व सूचना के ब्लास्टिंग होने से ग्रामीणों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है. अवैध खनन से पर्यावरणीय और सामाजिक नुकसान हो रहा है.

संघर्ष समिति के सदस्यों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक अवैध खनन बंद नहीं होता तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा. प्रशासन की निष्क्रियता और माफिया के खिलाफ कार्रवाई न होने से ग्रामीणों में आक्रोश है लेकिन उनके संकल्प और साहस के सामने ये कठिनाइयां छोटी हैं. सोहेया पहाड़ को बचाने के इस संघर्ष ने यह साबित कर दिया है कि ग्रामीण अपने पर्यावरण और भूमि की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.

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