मोतिहारी : जन सुराज पदयात्रा के दौरान जिले के चकिया में मीडिया से बात करते हुए प्रशांत किशोर ने सीएम नीतीश कुमार की प्रस्तावित यात्रा पर जमकर तंज कसते हुए कहा कि नीतीश जी कि प्रशासनिक काम के लिए निकलने पर उसे यात्रा का नाम दे रहे हैं. वो एक दिन पश्चिम चंपारण (बेतिया) में रुकेंगे, जहां कुछ सरकारी अफसरों और सिलेक्टेड लोगों से मिलेंगे.अगले दिन वो किसी अन्य शिवहर या किसी अन्य जिले में जाएंगे.
प्रशासन से लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा, क्या बोलना है, क्या नहीं
इस दौरान वो जनता से न ही कोई संवाद करेगे न उनकी यात्रा का कोई जन सरोकार है. इस दौरान नीतीश कुमार उन्हीं अफसरों से मिलेंगे जिनसे वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पटना से बात करते हैं. मुझे तो जितने लोग मिल रहे हैं वो बता रहे हैं कि नीतीश कुमार के आने से पहले प्रशासन द्वारा लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है कि क्या बोलना है, क्या नहीं बोलना है. पटना से सीधे उड़कर किसी दूसरे जिलों में आना और फिर रात में पटना चले जाना इसे आप यात्रा कैसे बोल सकते हैं? मुख्यमंत्री का सरकारी बंगले से निकल जाने को यात्रा नहीं कहा जा सकता है.
अगर हिम्मत है तो किसी एक गांव में पैदल चलकर दिखा दें
उन्होने कहा, मै नीतीश कुमार को चुनौती देता हूं कि अगर हिम्मत है तो वो अपने पसंद के ही किसी एक गांव में सरकारी अमले के साथ पैदल चलकर दिखा दें. उन्होंने कहा कि सर्किट हाउस में बैठ कर सिर्फ समीक्षा बैठक हो सकती है. यात्रा नही, प्रशांत ने कहा कि नीतीश कुमार अब उम्र के इस पड़ाव पर सामाजिक, राजनीतिक तौर पर अकेले पड़ गए हैं, जहां वो इस आशा में हैं कि किसी तरह जनता की आंखों में धूल झोंक कर वोट हासिल कर लें और सत्ता में बने रहें. नीतीश कुमार को मालूम है कि इस बार अंतिम है, इसके बाद उनके लिए कुछ नहीं बचा है. समय रहते रिटायर हो जाएं, इसी में उनकी भलाई है. किसानों की समस्याओं पर बात करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि आज किसानों की सबसे बड़ी समस्या खाद-बीज की अनुपलब्धता और कालाबाजारी है.
यूरिया की हो रही कालाबाजारी, नेपाल में शिफ्ट हो रहा
प्रशांत ने कहा कि किसानों ने गेहूं की बुवाई कर दी है. अब समय से खाद नहीं मिलने से उनकी फसलें खराब होने के कगार पर है. प्रशांत ने कहा कि यूरिया की कालाबाजारी इस हद तक है कि सुबह 4 बजे से महिलाओं को लाइन में लगना पड़ता है उसके बावजूद उन्हें यूरिया नहीं उपलब्ध हो पा रहा है.पाता.राज्य में यूरिया की कालाबाजारी चरम पर है. बिहार का यूरिया नेपाल में शिफ्ट हो रहा है जिसकी वजह से बिहार के किसानों को यूरिया नही मिल रही है.वही किसानों को उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य केवल कागज तक सिमट कर रह गयी है.जो कृषि आधारित बिहार के लिए गंभीर समस्या है.