जैन धर्म के पर्वराज पर्युषण के तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म की पूजा अर्चना
रांची: दशलक्षण पर्व के तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म की पूजा अर्चना का आयोजन बड़े धूमधाम से हुआ। उत्तम आर्जव का शाब्दिक अर्थ जीवन में सरलता और शुद्धता की धारणा से है। इस अवसर पर स्वाध्याय सारथी विद्वत् अंकित जैन शास्त्री ने कहा कि दशलक्षण महापर्व के तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म का पालन करना हमारे जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है। आर्जव शब्द ऋजुता से लिया गया है, जिसका मतलब है – सरलता और सत्यता। यह धर्म हमें मायाचारी, छल, कपट, और धोखाधड़ी से दूर रहने की प्रेरणा देता है।
उत्तम आर्जव धर्म सिर्फ बाहरी सत्यता को ही नहीं, बल्कि आंतरिक सरलता को भी महत्व देता है। जब व्यक्ति अपने विचारों, शब्दों और कर्मों में सच्चाई का पालन करता है, तो समाज में विश्वास और शांति की स्थापना होती है। यह धर्म हमें यह सिखाता है कि हम अपने कर्मों में शुद्धता बनाए रखें और किसी के साथ धोखा न करें, जिससे समाज में आदर्श व्यवस्था का निर्माण हो।
इस दिन का संकल्प था – “हमें छल कपट से बचकर सहज और सरल बनना है।” आज का मंत्र था – “मैं सहज हूं।” दशलक्षण महापर्व का तीसरा दिन हमारे आत्मा में उत्तम आर्जव धर्म की प्रगति करने का है। “योगस्यावक्रता आर्जवम्” अर्थात् मन, वचन और काय की सरलता ही आर्जव है। जैसे मन में विचार आता है, वैसे ही बोलना और कार्य करना यही आर्जव का वास्तविक रूप है।
राजधानी रांची स्थित दोनों जैन मंदिरों में इस अवसर पर विशेष पूजा अर्चना का आयोजन हुआ। अपर बाजार जैन मंदिर के बड़े सभागार में सामूहिक पूजन संगीत और वाद्य यंत्रों के साथ सम्पन्न हुआ। श्रद्धालु मंदिर में खचाखच भरे हुए थे। इस दौरान रविन्द्र कुमार, विशाल कुमार, प्रकाश गोधा परिवार, और प्रकाशचंद प्रतीक कुमार बड़जात्या परिवार ने अपर बाजार मंदिर में शांति धारा का आयोजन किया। वहीं, संजय कुमार, अरुण कुमार लुहाड़िया परिवार, और सुनील कुमार प्रदीप कुमार छाबड़ा परिवार द्वारा वासुपूज्य जिनालय में शांति धारा की गई।
इस उपलक्ष्य में पंडित अंकित जी शास्त्री ने तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन किया और प्रवचन दिया, जिसमें उन्होंने आर्जव धर्म के महत्व को विस्तार से समझाया। साथ ही, जैन युवा जागृति के सदस्यों द्वारा रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का नाम था “एक मंच, दो परिवार – कौन बनेगा सुपर स्टार”, जिसमें विभिन्न परिवारों ने भाग लिया और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
यह पर्व जैन समाज के लिए आत्मनिर्माण और समाज के लिए उत्कृष्ट आचारधर्म को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
