करमा पूजा 3 सितंबर को, यह पर्व देता है प्रकृति संरक्षण और भाई-बहन के प्रेम का संदेश: संजय सर्राफ
रांची : करमा पूजा, जो झारखंड सहित पूर्वी भारत के कई राज्यों में आस्था और उल्लास के साथ मनाया जाता है, इस वर्ष 3 सितंबर (बुधवार) को मनाया जाएगा। यह जानकारी विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग एवं श्री कृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने दी।
उन्होंने बताया कि करमा पूजा आदिवासी समाज का एक प्रमुख पर्व है, जो झारखंड के अलावा बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और असम में भी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व प्रकृति के संरक्षण, भाई-बहन के प्रेम और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है।
प्रकृति से जुड़ा आध्यात्मिक पर्व
संजय सर्राफ ने कहा कि करमा पर्व सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के बीच गहरे संबंधों का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं 24 घंटे उपवास रखती हैं, और कर्मा वृक्ष (कर्म डाल) की पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं। यह वृक्ष उनके लिए केवल पेड़ नहीं, बल्कि आराध्य देव है, जो उन्हें ऑक्सीजन, ऊर्जा और आध्यात्मिक बल देता है।
भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना
इस पर्व पर बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए कर्म वृक्ष की पूजा करती हैं। बांस की बनी डाली को सजाकर घर के आंगन में रखा जाता है और उसके पास कर्मा वृक्ष की टहनी गाड़कर पूजा की जाती है। महिलाएं गीत-गवनई और नृत्य के माध्यम से पर्व की महिमा का गुणगान करती हैं।
धर्म और कर्म का समन्वय
सर्राफ ने कहा कि करमा पर्व यह सिखाता है कि कर्म ही धर्म है और धर्म ही कर्म। आदिवासी समाज में कर्म वृक्ष को सत्य-असत्य, पाप-पुण्य का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। यही नहीं, यह पर्व सरना मां या धर्मेश जैसे प्रकृति-आधारित ईश्वरों की आराधना का माध्यम भी बनता है, जो सभी जीव-जंतुओं से प्रेम का संदेश देते हैं।
समृद्धि का नया दृष्टिकोण
उन्होंने कहा कि करमा पूजा हमें यह भी याद दिलाता है कि समृद्धि केवल आर्थिक नहीं होती, बल्कि पारिवारिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन से ही जीवन सुखमय बनता है। यह पर्व संस्कार, तहज़ीब, एकता और प्रेम को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने वाला महापर्व है।
