करमा पर्व हमें प्रकृति के संरक्षण करने की देती है प्रेरणा: संजय सर्राफ
रांची : विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग एवं राष्ट्रीय सनातन एकता मंच के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक करमा पूजा पर्व 14 सितंबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा. आदिवासी समाज का प्रमुख पर्व करमा पूजा झारखंड बिहार के अलावे उड़ीसा बंगाल छत्तीसगढ़ एवं असम मे धूमधाम के साथ मनाया जाता है. करमा पर्व हमें प्रकृति के संरक्षण करने की प्रेरणा देता है. इस पर्व में बहनें अपने भाइयों की सुख- समृद्धि की कामना करती है एवं उनके दीर्घायु के लिए पूजन करती है.
महिलाएं 24 घंटे उपवास करती है इस दौरान महिलाएं कर्म डाल की पूरे विधि विधान से पूजा करती है. करमा पर्व सृष्टि का पर्व है ये समस्त मानव, जीव जंतुओं का पर्व है क्योंकि इस संसार में कर्म ही धर्म है धर्म ही कर्म है आदिवासी समाज प्रकृति को ही आराध्य देव और भगवान मानते हैं. तथा उनका मानना है कि कर्म का वृक्ष 24 घंटा ऑक्सीजन देता है यही कारण है कि आदिवासी समुदाय करम वृक्ष को आराध्य देव के रूप में मानते हैं कर्म पूजा के दिन बांस की बनी डाली को सजाकर घर के आंगन के बीच में रखा जाता है. उसके साथ ही कर्म वृक्ष के पेड़ को भी घर के आंगन में गाड़ा जाता है. और उसके चारों तरफ घर की महिलाएं बैठकर पूजा आराधना एवं अपने भाई के सुख समृद्धि की कामना करती है. प्र
कृति के साथ इनका गहरा संबंध है. तथा प्रकृति के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है. करमा पर्व हमें प्रकृति के संरक्षण करने की प्रेरणा देने के साथ ही मानव समाज में सद्भाव और अच्छे चरित्र का निर्माण पीढ़ी दर पीढ़ी होते रहने की सीख देती है. जिस तरह सूर्य का काम निरंतर प्रकाश देना है पेड़ का काम हमें फल और छाया देना है उसी तरह हम मानते हैं कि कर्म और धर्म एक सिक्के के दो पहलू है आदिवासी समाज करम पर्व मे पाप और पुण्य, सत्य, असत्य को अपने आराध्य देव कर्म वृक्ष के रूप में स्वीकारते हैं और उससे जो अलौकिक शक्तियां निकलती है जिसे हम सरना मां या धर्मेश कहते हैं उसमें हम उनके स्वरूप को देखते हैं क्योंकि वो संसार के किसी भी जीव जंतुओं से बैर नहीं करता है.