रांची : झारखंड के खाद्यान्न कारोबारी फल एवं सब्जी कारोबारी कृषि विपणन विधेयक के विरोध में कल 15 फरवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे. सामानों की आवाजाही भी पूरी तरह ठप रहेगी. आज चेंबर भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में चेंबर अध्यक्ष किशोर मंत्री एवं पूर्व अध्यक्ष मनोज नरेड़ी ने कहा कि यह विधेयक एक काला कानून है.
किसान विरोधी कानून निरस्त किया जाए
चेंबर अध्यक्ष ने कहा कि यह किसान विरोधी व्यापार विरोधी और उपभोक्ता विरोधी कानून है जिसे निरस्त किया जाए. दिसंबर 2022 से खाद्यान्न कारोबारी इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं. आंदोलन कर रहे हैं. गत 8 फरवरी को राज्य स्तरीय हड़ताल भी हुई थी. लेकिन सरकार की तरफ से इस मामले में कोई पहल नहीं की गयी. साल 2015 में इस कानून को तत्कालीन सरकार ने निरस्त किया था. लेकिन फिर से यह काला कानून लालफीताशाही को बढ़ावा देने के लिए लागू किया गया है.
झारखंड अनाज उत्पादक राज्य नहीं, कानून का औचित्य ही नहीं
पड़ोसी राज्यों बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में यह कानून नहीं है. झारखंड अनाज उत्पादक राज्य नहीं है. ऐसे में इस कानून का यहां कोई औचित्य ही नहीं है. राज्य के 24 मंडियों में किसानों की उपज बिकवाने की व्यवस्था नहीं है. इस कानून से उपज महंगी होगी. झारखंड में धान की पैदावार होती है. इस प्रावधान से चावल मिलों को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है.
सभी संगठन कर रहे सहयोग
राज्य के खाद्यान्न कारोबारियों का स्पष्ट कहना है कि सरकार इस विधेयक को वापस ले. हड़ताल से होने वाली असुविधा के लिए सरकार ही जिम्मेदार होगी. जितने भी संगठन है सभी सहयोग कर रहे हैं. यह काला कानून है जिससे सब को नुकसान होगा. बेरोजगारी बढ़ेगी. झारखंड से 4 गुना ज्यादा खेतिहर भूमि बिहार में है लेकिन वहां पर यह कानून लागू नहीं है.
सरकार हमारी बातें सुने, इसे खत्म करे
यह दोहरा कराधान का मामला है. सरकार हमारी बातें सुने इसे खत्म करें. हमने सरकार में शामिल सभी दलों के नेताओं से मिलकर बिल वापस लेने का आग्रह किया, लेकिन सरकारी स्तर पर कोई वार्ता नहीं हुई. इस हड़ताल से झारखंड में प्रतिदिन 200 करोड़ रुपए तक का कारोबार प्रभावित होगा.