Holi

जूतम- पैजार वाली अनोखी होली, 150 सालों से चल रही परंपरा

राष्ट्रीय

मथुरा जिले के कस्बा सौंख में 150 वर्षों की परम्परा आज भी जीवित है. यहां होली अंग्रेजी हुकूमत द्वारा किए गए जुल्म के विरोध में शुरू की गयी थी. कहा जाता है कि लोग अपने से छोटे लोगों को जूता- चप्पल मारकर किसी भी संघर्ष से बेखौफ होकर लड़ने के लिए आशीर्वाद देते हैं. जिसे लेकर बुधवार यहां जूतम- पैजार वाली अनोखी होली खेली गयी.

धुलंडी के दिन जूता- चप्पल मार होली खेली

बुधवार को धुलंडी के दिन कस्बा सौंख में जूता- चप्पल मार होली खेली गयी. फाल्गुन माह आते ही ब्रज में होली महोत्सव, होलिका दहन, हुरंगा जैसे कार्यक्रम आयोजित होने लगते हैं. ब्रज में आपने रंगों की होली, लठ्ठमार होली, कपड़ा फाड़ होली, कीचड़ होली मनाते, तो सुना होगा. लेकिन, एक जगह ऐसी भी है जहां एक-दूसरे को गुलाल लगाने के साथ जूता-चप्पल मारकर होली खेली जाती है.

इस अनोखी होली का अपना अगल ही अंदाज

सुनकर आपको थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन ब्रज की इस अनोखी होली का अपना अगल ही अंदाज है. खुटैलपट्टी के बछगांव गांव के लोग अपने से कम उम्र के लोगों को गुलाल लगाने के साथ सिर पर जूता-चप्पल मारकर होली की शुभकामनाएं और आशीर्वाद देते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. बुधवार दोपहर से देरशाम तक लोगों ने यहां इसी प्रकार से होली खेली.

जूता- चप्पल मारकर अंग्रेजों के जुल्म की याद दिलाते हैं

ग्रामीणों ने बताया कि अपने छोटे लोगों को जूता- चप्पल मारकर देश में अंग्रेजों द्वारा किए जुल्म की याद दिलायी जाती है. साथ ही भविष्य में किसी भी संघर्ष से तटस्थता से निपटने का आशीर्वाद दिया जाता है. होली की इस परंपरा के साथ लोगों को सकारात्मक विचारों और सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है.

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