रांची : चिल्ड्रन पार्क, कडरू में आज तीसरे दिन दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन एवं मधुर संकीर्तन का भव्य आयोजन राधा गोविन्द धाम, रांची के सानिध्य में प्रारम्भ हुआ. स्वामीजी द्वारा भक्त और भगवान के संबंध पर प्रकाश डालते हुए पाँच दिवसीय प्रवचन के तीसरे दिन की श्रृंखला को बड़ी ही सफलतापूर्वक आगे बढ़ाते हुए स्वामीजी ने अपने प्रवचन में तत्वज्ञान को लोगों के बीच परिपक्व करने के अपने इरादे से उन्हें तीन महत्वपूर्ण ज्ञान बताया.
आत्मा ईश्वर का सनातन अंश

जैसे मैं (आत्मा) कौन?, मेरा (ईश्वर) कौन?, जीवन का लक्ष्य क्या है? माया क्या है? इत्यादि के बारे में उन्होंने बताया. उन्होंने बताया कि जीव जो अपने आपको शरीर मानता है उसका मूलस्वरूप ‘आत्मा’ है. और आत्मा ईश्वर का सनातन अंश है. अंश का अपने अंशी से ही संबंध होता है. इसीलिए संसार से और संसारी मनुष्यों से जिन्हें हम अपना संबंधी समझते हैं उनसे हमारा कोई नाता ही नहीं है. हमारा जो स्वभाव है कि हमें हर क्षण आनंद चाहिए, जो जीव अनंत जन्मों से खोजता आ रहा है, वह उसे ईश्वर में ही मिलेगा.
आध्यात्मिक तत्वज्ञान के लिये सच्चे गुरु की आवश्यकता
ईश्वरीय जगत में अद्वैतवाद, द्वैतवाद, विशिष्टाद्वैत, द्वैताद्वैत इत्यादि दर्शन हैं. जैसे संसार में हमें संसारी ज्ञान के लिए टीचर की आवश्यकता पड़ती है. वैसे ही आध्यात्मिक तत्वज्ञान प्राप्त करने के लिए हमको एक सच्चे गुरु की आवश्यकता पड़ती है. उनके बिना हम आध्यात्मिक जगत में पैर तक नहीं रख सकते.
भगवान तक पहुँचने का सरल उपाय ‘प्रभु की भक्ति’
एक बार आप सच्चे गुरु से मिल गए तो वह बताते हैं कि भगवान तक पहुँचने का सरल उपाय केवल ‘प्रभु की भक्ति’ ही एक मात्र मार्ग है. जैसे हम भक्ति तो करते हैं. लेकिन उदहारण के रूप में जब हम भगवान को अन्न का भोग लगाते हैं, तो आँखे बंद करके, थाली के चारों ओर जल घुमाके और नमस्कार करके खाने लगते हैं. हमारे अंदर भाव ही नहीं जाग्रत होता कि वह ब्रह्म तो सर्वव्यापक है और उसने जरूर भोग ग्रहण किया है, जिस कारण अब यह खाना प्रसाद बन गया है.
हम ईश्वर के साथ फिजिकल ड्रिल करते हैं
हम ईश्वर के साथ फिजिकल ड्रिल करते हैं. वाल्मीकि जी की ‘रामायण’ में भक्त शबरी का आख्यान आता है. भील समुदाय की होते हुए भी जब भगवान श्रीराम उनके पास आए तो शबरी ने अपने जूठे बेर अनंतकोटि ब्रह्माण्डनायक श्रीराम को अपने हाथों से खिलाए. और प्रभु श्रीराम ने बड़े चाव से अपने भक्त के प्रेम को स्वीकार करते हुए वह मीठे बेर खाए भी.
स्वामी जी 4 दशकों से विश्व के लोगों का जीवन परिवर्तित कर रहे
स्वामीजी ने प्रवचन के दौरान हरि नाम संकीर्तन करवाया जिस में जन-समूह भक्ति के भावों में झूम उठे. पिछले 4 दशकों से स्वामी जी विश्व के अनेक देश अमेरिका, सिंगापुर, मलेशिया, नेपाल और भारत के असंख्य लोगों का जीवन परिवर्तित करने आए हैं. स्वामी जी के सानिध्य में आकर लोग उनकी सरलता सहायक प्रकृति व विनम्रता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते. लोगों का जीवन वास्तविक रूप में सफल हो इस दिव्य लक्ष्य की तरफ स्वामी जी निरंतर अग्रसर है.
माया ने हमें भगवान को भुला दिया
उन्होंने भगवान की प्राप्ति पर चर्चा कर बताया कि भगवान सच्चिदानंद है, चितमय , आनंद सिंधु, ज्ञान मय है लेकिन माया ने हमें भगवान को भुला दिया है हमने अपने को सिर्फ एक शरीर मान लिया है, क्योंकि उसी के सुख के लिए हम सदैव प्रयास में लगे हैं. महाराज श्री कहते हैं एक संत ही हमें भगवान की लीला बता सकते हैं. वही एक सच्चे गुरु भगवान के दर्शन व उनके मार्ग पर चलना हमे सिखा सकते हैं.