रांची : माकपा के राज्य सचिव प्रकाश विप्लव ने कहा कि पार्टी राजमहल लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार उतारेगी. गोपीन सोरेन माकपा के उम्मीदवार होंगे और वह नौ मई को नामांकन करेंगे.
उन्होंने गुरुवार को कहा कि राज्य कमिटी ने झारखंड में केवल एक लोकसभा सीट पर अपना उम्मीदवार देने का निर्णय किया है. पार्टी की अखिल भारतीय चुनावी कार्यनीति जिसमें भाजपा और उसके सहयोगियों को पराजित कर केंद्र में एक धर्मनिरपेक्ष सरकार का गठन सुनिश्चित किए जाने का लक्ष्य तय किया गया है. इसके मद्देनजर राज्य की राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए माकपा ने केवल एक सीट पर ही चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है.
राजमहल लोकसभा सीट पर पार्टी के चुनाव अभियान की तैयारी बहुत पहले से ही चल रही है. पार्टी का इस इलाके में अपना जनाधार भी है और पिछले दो वर्षों से यहां के ज्वलंत जनमुद्दों पर पार्टी की ओर से लगातार आंदोलन चलाया जा रहा है.
हालांकि यह सीट झारखंड में इंडी गठबंधन के एक प्रमुख घटक की पिछले दो बार से जीती हुई सीट है. लेकिन यहां से जीते हुए सांसद की निष्क्रियता और इस लोकसभा क्षेत्र के ज्वलंत समस्याओं के प्रति उनकी उदासीनता के चलते मतदाताओं में भारी आक्रोश है. संताल परगना में कार्पोरेट घरानों के जरिये यहां उपलब्ध खनिज की लूट के लिए आदिवासियों और अन्य गरीबों की जमीन हथियाने के खिलाफ तथा इस क्षेत्र में निजी खनन से उत्पन्न हो रहे बढ़ते प्रदूषण के खिलाफ भी सांसद की रहस्यमय चुप्पी से आम मतदाता काफी नाराज हैं. उन्होंने कहा कि खुद उनके दल के विधायकों सहित पार्टी के कई नेताओं की ओर से भी उनकी उम्मीदवारी का मुखर विरोध किया जा रहा है. यहां के आम मतदाताओं का कहना है कि यह उम्मीदवार भाजपा को हराने में सक्षम नहीं है.
इस पृष्ठभूमि में राजमहल लोकसभा क्षेत्र में माकपा ही एकमात्र राजनीतिक पार्टी हैं जो भाजपा को हराने में पूरी तरह सक्षम है. उन्होंने कहा कि पार्टी का मानना है कि गठबंधन मे शामिल राजनीतिक पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग का मामला शुरू से ही राज्य स्तर पर तय किए जाने का फैसला किया गया था. इसके अनुरूप झारखंड में आईएनडीआईए गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के बीच सीट शेयरिंग आंशिक रूप से ही हुआ है.गठबंधन में शामिल देश की प्रमुख वामपंथी पार्टी माकपा से सीट शेयरिंग के बारे में गठबंधन की सत्तारूढ़ पार्टियों ने कोई चर्चा भी नहीं की.
उन्होंने कहा कि झारखंड मे वामदलों के प्रति गठबंधन की सत्तारूढ़ पार्टियों की उदासीनता और उनके साथ राजनीतिक संवाद नहीं किया जाना गठबंधन के नेतृत्व की कमजोरी है, जिसके जिम्मेवार वामदल नहीं हैं.