राज्यपाल से मिला भाजपा का प्रतिनिधिमंडल, प्रतियोगी परीक्षा विधेयक को रोकने की मांग

राँची

रांची : भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में भाजपा विधायकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज राजभवन पहुंचकर राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन से मुलाकात की. प्रतिनिधिमंडल ने झारखंड राज्य प्रतियोगी परीक्षा विधेयक-2023 को रोकने की मांग की. इस दौरान भाजपा ने विधेयक के विरोध में राज्यपाल को एक पत्र सौंपा, जिसमें इस पर गंभीरता से विचार करते हुए राज्य सरकार को आवश्यक दिशा-निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

विधेयक की समीक्षा कर निर्णय लें

भाजपा ने राज्यपाल से अपील की है कि इस विधेयक की समीक्षा करें. इसके बाद ही निर्णय लें. भाजपा के पत्र में लिखा है कि भाजपा भ्रष्टाचार और कदाचार मुक्त परीक्षा संचालन की प्रबल पक्षधर है, लेकिन इस विधेयक के जरिए राज्य सरकार झारखंड लोक सेवा आयोग, झारखंड कर्मचारी चयन आयोग जैसी संस्थाओं में प्रतियोगी युवाओं की आवाज को दबाकर मनमाने तरीके से परीक्षाओं का संचालन कराना चाहती है. यह आशंका तब और प्रबल हो जाती है जब विगत दिनों जेपीएससी की 7वीं से 10वीं तक की सिविल सेवा परीक्षा और जेएसएससी की कनीय अभियंता परीक्षा में घोर धांधली उजागर हुई.

पर्याप्त सबूत उजागर होने का ही परिणाम सरकार ने धांधली स्वीकारी

पत्र में लिखा है कि प्रथम दृष्टया राज्य सरकार ने इस अनियमितता को सिरे से नकारा, लेकिन युवाओं, अभ्यर्थियों के व्यापक विरोध एवं परीक्षा में हुई धांधली के पर्याप्त सबूत उजागर होने का ही परिणाम हुआ कि राज्य सरकार ने धांधली को स्वीकारा. यदि यह विरोध नहीं हुआ होता तो राज्य सरकार अनियमित बहाली करने में सफल हो जाती. विरोध का ही परिणाम हुआ कि जेएसएससी को कनीय अभियंता की परीक्षा रद्द करनी पड़ी थी.

आवाज को दबाने के लिए उपर्युक्त विधेयक को पारित कराया

भाजपा का मानना है कि राज्य सरकार अपनी इस प्रकार की त्रुटियों, धांधली, विफलताओं और सत्ता पोषित भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज को दबाने के लिए उपर्युक्त विधेयक को पारित कराया है. इस विधेयक में अभिव्यक्ति की आजादी का स्पष्टतया उल्लंघन है. उदाहरण के तौर पर विधेयक की कंडिका 11 (2) में राज्य सरकार संबंधित परीक्षाओं के प्रश्न पत्रों, उत्तर पत्रकों के संबंध में सवाल खड़ा करने वाले परीक्षार्थियों, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया और जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध बिना किसी प्रारंभिक जांच किए प्राथमिक दर्ज कराने और लोगों को बिना किसी वरीय पदाधिकारी के अनुमोदन के गिरफ्तार करने का प्रावधान किया है.

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