Bhai Dooj 2024: भाई दूज पर यमराज और चित्रगुप्त पूजा विधि और मंत्र, जानें यम द्वितीया पर इनकी पूजा का महत्व

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कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यम का पूजन किया जाता है. इस साल भाई दूज 3 नवंबर, रविवार को है. इस विशेष पर्व को ‘यम द्वितीया’ के नाम से भी जाना जाता है. यम द्वितीया पर व्यापार से जुड़े लोग कलमदान पूजा भी करते हैं. यम द्वितीया पर भाई अपनी बहिन के घर भोजन करते हैं, इसलिये यह ‘भइया दूज’ नाम से भी जाना जाता है. स्कंद पुराण के अनुसार यम द्वितीया पर यमराज और चित्रगुप्त की पूजा भी की जाती है. स्कंद पुराण के अनुसार यम द्वितीया पर यमराज और चित्रगुप्त महाराज की पूजा का बहुत महत्व है. यमराज और चित्रगुप्त की पूजा करने से न केवल सभी दुखों का नाश होता है बल्कि अकाल मृत्यु का भय और संकट भी टल जाता है. आइए, जानते हैं यमराज और चित्रगुप्त की पूजा विधि और मंत्र.

भाई दूज पूजन का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार द्वितीय तिथि का आरंभ 2 नवंबर रात 8 बजकर 22 मिनट द्वितीया तिथि समाप्त 3 नवंबर रात 11 बजकर 6 मिनट है. ऐसे में भाई दूज का पर्व 3 नवंबर को मनाया जाएगा. जबकि भाई दूज पूजन का समय दिन में 11:45 मिनट से 1 बजकर 30 मिनट तक उत्तम रहेगा.

यम द्वितीया पर चित्रगुप्त जी और यमराज की पूजा से पहले गणेश जी से पूजा करें

यम द्वितीया का व्रत रखने वाले व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह स्नान करके पूजा गणेश जी का आसन लगाना चाहिए. इसके बाद करके “मम यमराजप्रीतये यमपूजनम् व्यवसाये व्यवहारे वा सकलार्थ सिद्धये मसिपात्रादीनां पूजनम् – भ्रातुरायुष्यवृद्धये मम सौभाग्यवृद्धये च भ्रातृपू‌जन करिणी.” यह संकल्प करके गणेश जी की पूजा करें. इसके बाद धर्मराज यमराज और चित्रगुप्त महाराज जी का आह्वान करें.

चित्रगुप्त और यमराज जी की पूजन विधि और मंत्र

सुबह जल्दी उठकर स्नान करके पूर्व दिशा में भगवान चित्रगुप्त की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें. इसके बाद उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं. इसके बाद उन्हें चंदन, अक्षत, फूल, फल, वस्त्र, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाना चाहिए. पूजा मंत्रों का जाप करते हुए एक सादे कागज पर रोली-घी से स्वास्तिक बनाते हैं और उस पर अपना नाम, पता, तारीख और साल भर का खर्च लिखें. इसके बाद प्रार्थनेयं गृहाणेमां नमस्ते राज्जमुद्रिके. ये राजमुद्रा’ (मुहर) की प्रार्थना करके सफेद कागज पर श्रीरामजी ‘श्रीरामो जयति, गणपतिर्जयति, शारदायै नमः और लक्ष्यै नमः’ लिखें. इस कागज को मोड़कर भगवान चित्रगुप्त के चरणों में अर्पित करें. अंत में, भक्त भगवान चित्रगुप्त की आरती करें.

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