रांची : कर्बला चौक स्थित माही कार्यालय मेंजलेस, जसम, प्रगतिशील लेखक संघ, वन पलाश एवं माही के संयुक्त तत्वावधान में फैज़ अहमद फ़ैज़ की 113वीं जयंती की पूर्व संध्या पर एक शाम फ़ैज़ के नाम का आयोजन किया गया. जिसकी अध्यक्षता संयुक्त रप से अपराजिता मिश्रा, अमल आजाद, इबरार अहमद, प्रो अरुण कुमार, सुब्रतो चटर्जी, गुफरान अशरफी ने की.
प्रो अरुण ने फ़ैज़ की प्रासंगिकता को रेखांकित किया
प्रो अरुण ने अपने संबोधन में फ़ैज़ की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए कहा कि फैज की शायरी आज के संदर्भ को गहराई तक उकेरती है. सुब्रतो चटर्जी ने कहा कि बिना इश्क के इंकलाब बेमानी है और फैज की शायरी रूमानी इंकलाब की शायरी है, जो दिलों में हलचल मचाती है.
प्रतिरोध को जवान करना है, तो फैज को स्मरण करें : अपराजिता
अपराजिता मिश्रा ने फैज की शायरी को समकालीन संदर्भ से जोड़ते हुए कहा कि प्रतिरोध को अपने अंदर जवान करना है तो फैज को स्मरण करना होगा. सभा को संचालित करते हुए एमज़ेड ख़ान ने कहा कि फ़ैज़ की शायरी जीवन संघर्ष की शायरी है जो अंधेरे में रास्ता दिखाती है.
इबरार ने फ़ैज़ की शायरी को रूमानी इंकलाब की संज्ञा दी
इबरार अहमद ने अपने अध्यक्षीय भाषण में फ़ैज़ की शायरी को रूमानी इंकलाब की शायरी की संज्ञा दी. बलराम एवं अमल आजाद ने भी संबोधित किया. सुमेधा मलिक ने अपनी खूबसूरत आवाज में बोल के लब आजाद है गाकर श्रद्धांजलि दी और समा बांधा.
ऋतुराज वर्षा ने स्वरचित रचना से मंत्रमुग्ध किया
कवियत्रि ऋतुराज वर्षा ने फ़ैज़ को स्मरण करते हुए अपनी स्वरचित रचना “याद न जाएं दिल से कैसे भूला बातें उनकी” तरुणुम में सुनाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया. रेणु बालाधर ने अपनी सुरीली आवाज में देशभक्ति और हिंदुस्तान पर गीत सुनाया.
इन्होंने फैज की कविताओं का पाठ किया
मो मोईन, मंजूर अहमद, गुफरान अशरफी, उजैर अहमद, अशीष ठाकुर, आलम आरा, एजाज अनवर, महफूज आलम,फिरदौस जहां, मुस्तक़ीम अहमद, अपूर्वा ने फैज की कविताओं का पाठ किया. फ़ैज़ की कविताओं का पाठ किया गया. कार्यक्रम के अंत में जनाब निशाद ने धन्यवाद ज्ञापन किया.