झारखंड के इतिहास में चम्पाई सोरेन का नाम विभीषण के रूप में दर्ज होगा: बन्ना गुप्ता

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सरायकेला : पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन के खिलाफ राज्य के मंत्री बन्ना गुप्ता ने टिप्पणी करते हुए उन्हें विभीषण करार दिया है. एक बयान जारी करते हुए उन्होंने कहा कि झारखंड का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, चम्पाई सोरेन का नाम विभीषण के रूप में दर्ज होगा.

बन्ना ने कहा कि जिस पार्टी और माटी ने उनको सब कुछ दिया उसको ठुकरा कर अपने आत्मसम्मान को गिरवी रखकर वे सरकार को तोड़ने का कार्य कर रहे थे लेकिन समय रहते जब चीजें सामने आ गई तो सोशल मीडिया में पोस्ट कर रहें है जबकि हकीकत है कि वे अपनी करनी पर पछतावा कर रहे हैं और मुंह छुपा रहे हैं. उन्होंने कहा कि गुरुजी ने एक साधारण व्यक्ति को जमशेदपुर से निकाल कर पहचान दी. उनको मान- सम्मान दिया. हर संभव मदद किया. पार्टी में अपने बाद का ओहदा दिया. जब-जब जेएमएम की सरकार बनी उसमें मंत्री बनाया. सांसद का टिकट दिया. हर निर्णय का सम्मान किया लेकिन उसके बदले चम्पाई दा ने राज्य को मौका परस्ती के दलदल में झोकना चाहा.

मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि हमारे नेता हेमंत सोरेन जब जेल जाने लगे तो उन्होंने सभी सत्ता पक्ष के विधायकों से चम्पाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही तो हम सभी ने हेमंत की बात को माना. जब खुद को मुख्यमंत्री बनने की बात थी तो वो निर्णय चम्पाई दा को बुरा नहीं लगा? प्रोटोकॉल के विरुद्ध नहीं लगा, तानाशाही नहीं लगा. जब हमारे नेता जेल से छूटने के बाद वापस आए तो चम्पाई दा कैबिनेट की बैठक में व्यस्त थे.

बन्ना ने कहा कि हर विभाग में, हर मंत्रालय में उनका हस्तक्षेप था. हर मंत्रालय में वे खुद निर्णय लेने लगे थे. तब उनको नेतृत्व में तानाशाही महसूस नहीं हुआ था क्या? दूसरे को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले और झूठा सहानुभूति इकट्ठा करने के चक्कर में चम्पाई दा अपने कुकर्मों को भूल गए हैं शायद. जब पार्टी और गठबंधन बुरे दौर से गुजर रहा था तो वे भाजपा नेताओं से अपनी सेटिंग बैठा रहे थे. जब हमारे नेता जेल में थे तो केंद्र सरकार की कानून बदलने वाली योजना को हर अखबार के प्रमुख पन्नों में अपनी फोटो के साथ छपा कर कौन सा गठबंधन धर्म निभा रहे थे?

बन्ना ने कहा कि चम्पाई दादा, 2019 का चुनाव आपके चेहरे पर नहीं, बल्कि हेमंत बाबू के चेहरे पर लड़ा था और ये जनादेश हेमंत बाबू और गुरुजी को मिला था लेकिन अनुकम्पा के आधार पर मिली कुर्सी को आप अपना समझने लगे. सच तो ये है कि आप सत्ता के लोभी हैं और कुर्सी के भी. जिस दिन हेमंत बाबू जेल से बाहर आये थे आपको नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना चाहिए था और नंगे पैर चलकर हेमंत बाबू को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए था लेकिन आप तो अंतिम समय में भी ट्रांसफर-पोस्टिंग में लगे थे.

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