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पलामू : पलामू जिले में 251 अनुसेवकों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है. इन अनुसेवकों की बहाली वर्ष 2010 में हुई थी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पलामू जिला प्रशासन ने सभी को बर्खास्त करने की कार्रवाई की. हालांकि 2010 में ही बहाल हुए सात अनु सेवकों की सेवा अभी भी बरकरार रखी गई है. इसे लेकर भारी असंतोष की स्थिति बनी हुई है.
सेवा से बर्खास्त हुए अनुसेवक शुक्रवार को शिवाजी मैदान में जुटे एवं बर्खास्तगी की कार्रवाई पर रोष व्यक्त किया. कहा गया कि इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई है. अगले आदेश का इंतजार किया जा रहा है. अनुसेवकों ने कहा कि बिना विधि परामर्श विभाग से परामर्श लिए ही उन्हें सेवा मुक्त किया गया है. इस मामले में झारखंड सरकार की भूमिका ठीक नहीं रही. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर झारखंड सरकार और पलामू के उपायुक्त को अपील में जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा अब तक नहीं किया गया और उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया गया.
गाैरतलब है कि पलामू जिले में वर्ष 2010 में विज्ञापन संख्या 1- 2010 के अनुसार 255 चतुर्थवर्गीय पदों पर बहाली हुई थी. हालांकि बहाली के दौरान पदों की संख्या निर्धारित नहीं की गई थी और आरक्षण रोस्टर का पालन नहीं किया गया था. इस बहाली के खिलाफ पलामू के ही अमृत कुमार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए सभी बहाली को फर्जी पाया और कर्मियों को सेवा से बर्खास्त करने का निर्देश दिया था. इसी निर्देश के क्रम में उपायुक्त पलामू ने कार्रवाई की. उपायुक्त के आदेश में कहा गया है कि वैसे कर्मी जो रिटायर हो गए हैं उन्हें पेंशन की सुविधा नहीं मिलेगी. मृत कर्मियों के आश्रित को पारिवारिक पेंशन नहीं मिलेगी और अनुकम्पा पर नियुक्त कर्मियों को दिया गया लाभ भी रद्द किया जाता है.
बर्खास्त कर्मियों ने आरोप लगाया कि नियुक्ति का विज्ञापन डीसी के स्तर से वर्ष 2010 में जारी हुआ था. प्रक्रिया के तहत उनकी बहाली हुई. यदि विज्ञापन में कोई त्रुटि थी तो कार्रवाई तत्कालीन डीसी पर होना चाहिए ना कि वर्षों नौकरी कर चुके कर्मियों को हटाना चाहिए. अनुसेवकों का कहना है कि उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं है. सरकार कोर्ट में उनकी ओर से अपील में नहीं गई. जिले के अधिकारी बात करने के लिए भी समय नहीं दे रहे हैं.
बर्खास्त कर्मियों ने कहा कि 2010 के पैनल से ही नियुक्त सातकर्मियों राजकुमार राम, कमल हसन, राशिद अंसारी, मों. तौहीद एवं अन्य दो की सेवा को बहाल रखा गए है और 251 को हटा दिया गया. धर्मेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कर्मियों की ओर से अपील की गयी है. वर्ष 2010 में बहस हुई कई चतुर्थवर्गीय कमी रिटायर हो गए हैं जबकि कुछ की मृत्यु भी हो गई है.